मंदिर के पदाधिकारी एवंम पुजारी :
श्री रूप नारायणजी मंदिर में नगराजजी के वंशज जो पंडे/पुजारीहै वो पंडीया , सेवक , भंडारी, चोवटिया , छड़ीदार,, राजपुरोहित, पुरोहित,शर्मा,जोशी , हामी ,उदलावत, खानावत, केनावत,अग्रावत,दोरावत,रानावत, मोटावत, कोलावत ,जुतावत, सिंगावत, दमावत आदि उपनामो से जाने जाते है.
श्री भुरजी,श्री मांगीलालजी,श्री सोहनजी,श्री सोहनजी,श्री ओगडमल,श्री केशुलाल जी ,श्री मोहन जी ,श्री मांगीलालजी ,श्री गिरधारीलाल जी,श्री रोशनलाल जी ,श्री शिवलाल जी,श्री नारायणलाल जी, डॉ. श्री मन्नालाल जी पंडीया,श्री भंवरलाल जी,श्री पुरूषोत्तमलाल जी, श्री सुभाषजी,श्री रूपजी,श्री रमेश जी,श्री भंवरलाल जी,श्री हीरालाल जी ,श्री निकेश जी,श्री रामलाल जी,श्री देवजी ,श्री हजारीमल जी,श्री हीरालालजी,श्री भुरालालजी,श्री भारत जी,श्री प्रभुलाल जी,श्री भीमजी,श्री मांगीलाल जी,श्री मन्नालाल जी,श्री कैलाश जी,श्री देवजी,श्री हरीश जी,श्री जमनालाल जी,श्री पप्पूलाल जी,श्री प्रकाशजी,श्री शंकरजी एवंम समस्त सेवंत्री और आकोदडा के पुजारीगण.
मंदिर के नियम :
श्री रूपनारायण जी मंदिर एक मर्यादित मंदिर है इसलिए उसमे सेवा-पूजा को ध्यान में रखकर वंशजो /पंडो ने कई कड़े नियम बनाये थे जो समयानुसार बदले गए जो निम्न लिखित है.( सेवा-पूजा का अर्थ भगवान के गर्भगृह के सभी कार्य,भगवान स्नान ,आरती,प्रसाद ,रेवाड़ी ,वस्त्र,पुष्प धारण आदि ).ये सारे नियम १९५० से पहले के बने हुये है.
- १. इस मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा-पूजा का अधिकार सिर्फ नगराज जी के वंशज को ही है .
- २. ये एक मर्यादित मंदिर है इसलिए इस मंदिर में जो भी पंडा पुजारी बनकर आता है उसे सेवा-पूजा करने के लिए पन्द्रह दिनो तक एक सन्याशी का जीवन व्यतीत करना पड़ता है. उस अवधि में उसे अपने घर / बाहर की कोई भी स्त्री और छोटे बच्चों को छुना वर्जित है.
- ३. मंदिर का पुजारी बनने के लिए जेनुऊ धारण करना अनिवार्य है. मंदिर के अंतराला अर्थात सूर्य भगवान के नीचे दरवाजे तक (अब पाट के अंदर ) सिर्फ पुजारी ही जा सकता है,वहाँ दुसरे पंडो का जाना भी वर्जित है (अब पाट के अंदर ).
- ४. मंदिर के पुजारी को किसी भी प्रकार का नशा वर्जित है.
- ५. मंदिर में 15 दिनों का ओसारा / वारा नगराज जी के वंशज ही निर्धारित करेंगे.
- ६. मंदिर में प्रात:काल और संध्याकाल का प्रसाद सही मात्र में वर्षोंनुसार नियमानुसार चढाना अनिवार्य है.
- ७. मंदिर के मुख्य पदों भंडारी,चोवटिया,छड़ीदार,भजनी और दर्जी,माली,कुम्हार,वेदपाठ शास्त्री ,इत्यादि का निर्वाचन / निष्काशन नगराज जी के वंशज को ही है. इस सब का निर्वाचन और निष्काशन उनकी योग्यता ,गुणों /कर्मो पर निर्भर है.
- ८. मंदिर के किसी भी पंडा/पुजारी का अंग-भंग हुआ है तो उसके लिए मंदिर में सेवा-पूजा वर्जित है और मंदिर से संबधित कोई भी कार्य और भगवान के किसी भी वस्तु को छुना भी वर्जित है.
- ९. मंदिर में जेनुऊ धारण करने के बाद कोई भी अविवाहीत पंडा, पुजारी बन सकता है परंतु पंडा अगर विवाहित होतो उसका विवाह समाज के समक्ष अग्नि के सातफेरो के साथ होना अनिवार्य है,नातायित विवाह वर्जित है ( दूसरो की त्याग की हुई पत्नी से विवाह).
- १०. मंदिर के सभी पंडे नगराज जी के वंशज है इसलिए वे सभी आपस में भाई है इसलिए पंडे अपने भाई की विधवा ,त्याग की हुई पत्नी,और बेटी से विवाह नहीं कर सकता है और अगर विवाह करता है तो उसके वंश का कोई भी सदस्य आजीवन मंदिर में पुजारी बनकर सेवा-पूजा के लिए वर्जित है.
- ११. मंदिर में कोई भी नगराज जी के वंशज का वयस्क पंडा/पुजारी मंदिर में कोई भी पद ( भंडारी,चोवटिया,छड़ीदार,भजनी आदि ) अपने वंशजो की आवश्यक संमती और मतों द्वारा ग्रहण कर सकता.
- १२. मंदिर में ओसारा बैठने / शुरू होने के बाद से ओसारा पूर्ण होने तक पूजारी को मंदिर में ही रहना अनिवार्य है ( परंतु अब एकम से दसम तक और दसम से पूनम/अमावश तक कोई भी पंडा/पुजारी मंदिर में आ जा सकता है).
- १३. मंदिर के अंदर का कार्यभार भंडारी देखेंगे और बाहर का कार्यभार चोवटिया देखेंगे और बाकी के सदस्य ( छड़ीदार ,दर्जी,माली,कुम्हार,निषाद,हरिजन इत्यादी) अपना कार्यभार वर्षो से नियानुसार करते आए है वैसे ही करते रहेंगे.
- १४. मंदिर में ओसारा से संबधित किसी भी शिकायत का निवारण नगराज जी के वंशज और मेवाड़ दरबार को ही होगा ( अब नगराज जी के वंशज और देवस्थान / कोर्ट को भी है)
- १५. मंदिर का ओसारा / वारा कभी भी किसी भी परिस्थिती में दत्तक / खोले नहीं जा सकता है.
प्रमुख शोधकर्ता - पंडाजी स्व. श्री राजमल जी लच्छीराम जी पंडीया
पंडाजी डॉ. श्री मन्नालाल जी पंडीया
( B.com,B.M.S.,LL.B.,LL.M,Ph.D.(Law) )
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Mob: 9819457422 / 9867420790
सह –शोधकर्ता – पंडाजी श्री भारत मन्नालाल जी पंडीया